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संथाल हूल दिवस : अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध वनवासी वीर योद्धा सिद्धू-कान्हू की शौर्यगाथा

यह कहानी सन 1855 के संथाल हूल क्रांति के नायक रहे सिद्धू व कान्हू नाम के दो भाईयों की है, जिन्होंने अंग्रेजी सत्ता पोषित साहूकारी व्यवस्था के विरूद्ध हथियार उठाकर उनका मुंहतोड़ जवाब दिया और साथ ही अपनी मिट्टी, मातृभूमि के लिये सर्वोच्च बलिदान देकर सदा के लिये अमरत्व को प्राप्त हो गये। मौजूदा संथाल परगना का इलाका बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन पहाड़ियों एवं जंगलों से घिरा क्षेत्र था। इस इलाके में रहने वाले पहाड़िया, संथाल और अन्य निवासी खेती-बाड़ी करके जीवन-यापन करते थे। अंग्रेजों ने वादा यहां के निवासियों से वादा-खिलाफी किया और उनपर मालगुजारी लगा दी। मालगुजारी के विरोध में वनवासियों के जनाक्रोश से उत्पन्न आंदोलन के प्रथम दिन 30 जून को दो वीर जनजाति योद्धा सिद्धू व कान्हू की याद में "संथाल हूल दिवस" के रूप में मनाया जाता है। संथाली में हूल का अर्थ क्रांति होता है। 1793 में लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा आरम्भ किये गये स्थायी बन्दोबस्त के कारण जनता के ऊपर बढ़े हुए अत्याचार इस क्रांति का एक प्रमुख कारण थे। सन 1855 में अंग्रेज कैप्टन अलेक्ज़ेंडर ने क्रांति का का दमन कर दिया। ब्रिटिश हुकूमत व...

बलिदान दिवस: गोंडवाना राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती ने अकबर को ललकारा

 विश्व के इतिहास में रानी दुर्गावती की वीरता, साहस व शासन प्रणाली के किस्से स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हैं। दुर्गावती भारतीय इतिहास की एक ऐसी वीरांगना थीं, जिन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया। अपने पति की मौत के बाद न केवल गोंडवाना राज्य की शासक बनी, बल्कि उन्होंने एक साहसी शासक की तरह अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगलों से कई लड़ाइयां भी लड़ीं और युद्ध करते-करते अपना सर्वोच्च बलिदान देकर वीरगति को प्राप्त हुईं, उन्होंने कभी समझौता नहीं किया, देश और नारी शक्ति के सम्मान के लिये युद्ध लड़ा। भारत में अब तक के मुस्लिम सुल्तानों या बादशाहों से भारत के योद्धाओं ने जितने भी युद्ध किये थे, वे वास्तव में देश के सम्मान और नारीशक्ति के सम्मान के लिये ही लड़े गये थे। क्रूर अकबर जैसे मुगल आक्रांताओं का रानी ने बहादुरी से सामना किया था। उन्होंने अपने शासनकाल में कृषि, पर्यटन, निर्माण कार्य खूब किया था, जिसके कारण आम जनमानस में बहुत लोकप्रिय रहीं। *जन्म और प्रारम्भिक जीवन*  रानी दुर्गावती का जन्म 05 अक्टूबर,1524 को कालिंजर दुर्ग (वर्तमान में जिला बांदा) में महाराजा कीर्ति सिंह चंदेल के य...