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आखिर क्या है मोदी जी का नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से नेशन हेल्थ मिशन की घोषणा करते हुए कहा कि "ये देश एक नए दौर का साक्षी बनने वाला है और नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन स्वास्थ के क्षेत्र में एक क्रान्ति लकें आएगा"। इसकी तैयारी काफी पहले से ही चल रही थी। इसका बजट लगभग 144 करोड़ रुपये है। स्वास्थ राज्यमन्त्री अश्विनी चौबे ने बताया कि " आपके स्वास्थ संबंधी सारी जानकारी एक id के रूप में तैयार किया जाएगा। हमारी सरकार की ये प्राथमिकता है की स्वास्थ की सुविधा देश के हर व्यक्ति तक पहुंचें। नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन के तहत  अपको एक 14 अंकों का कार्ड दिया जाएगा जिसका नम्बर सबके के लिए अलग अलग होगा। इस कार्ड में आपकी स्वास्थ संबंधी सारी जानकारी जानकारी मौजूद होगी। जैसे अपने आज तक कहाँ-कहाँ  और किस-किस डॉक्टर से इलाज कराया और क्या-क्या दवाईयां दी गई कौन-कौन से जाँच हुए किस प्रकार की सर्जरी हुई हैं। ऐसी अनेक प्रकार की आपके स्वस्थ से संबंधित जानकारी का संकलन होगा। जिससे जब आप किसी डॉक्टर के पास जाएंगे तो इस कार्ड के माध्यम से आपका इलाज कम समय के साथ कम खर्च में अच्छी स्वस्थ सुविधा मिलेगी। ऐसा...

क्या आम आदमी #BoycottChina कर सकता है?

image not copyright आज कल भारत में #boycottchina खूब चल रहा है मतलब चीन से माल खरीदना कम करो पर क्या वास्तव में ये मुमकिन हैं? क्योंकि एक तरफ हम देख रहे कि ट्विटर और फेसबुक पर #boycottchina ट्रेंड कर रहा है वही दूसरी तरफ हमारी ई-कॉमर्स वेबसाइट और इलेक्ट्रॉनिक दुकानों पर चीनी फोन आते ही मिनटो में बिक जा रहे हैं। कही न कही ये बात हमारी जनता को खलती भी है कि हम स्मार्टफोन के मामले में चीन पर इतना क्यो‌ निर्भर है। आज के समय मे चीनी स्मार्टफोन जैसे शिओमी, वीवो, ओप्पो ये भारतीय स्मार्टफोन बाजार के 72% मार्केट पर कब्जा की है बाकी के फोन के पास केवल 28% शेयर बचा है। कही न कही  इसकी वजह यह की एक बजट फोन में किसी आम आदमी को जो चाहिए होता है वो सारी खूबिया इसमे मिल जाती है तो आप कैसे उस छोटे कामगार को कह सकते है जो कई  महीनों तक काम करके 10 से 12 हजार बचा के यह फोन खरीदता है की तुम देशभक्ति दिखाओ और 6 हजार मिला कर कोई और कंपनी का फोन खरीदो चीनी फोन मत खरीदो क्योंकि ये लोग बॉर्डर पर तनाव उत्पन्न करते है। यह एक बहुत ही कड़ाव सच है की चीनी फोन का हमारी समार्टफोन उद्योग में जो वर्चस्व है वो इ...

अब उम्मीद है बिहारी शब्द को गाली की नहीं गर्व का समझेंगे

‌‌"वीर कुंवर सिंह, शेर शाह ने बाजी कभी न हारी बंजर में भी फूल खिला दे है वो सच्चा बिहारी" ये पंक्तियाॅं गलवान घाटी में 15 और 16 जून की रात में बिहार रेजिमेंट के 20 जवानों पर काफी सटीक बैठती है जो चीनी सेना के साथ लड़ाई में मारते मारते शहीद हो गए जिनकी उम्र महज 19 से 23 साल की थी। और धन्य हैं ऐसे पिता जिसके एक बेटे की लाश सामने है और अपने दो और बेटो की फौज में भेजने को बोल रहा हो। आज बिहारी शब्द पश्चिम उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा आदि राज्यों में एक गाली कि तरह बन गया जिसे बोलकर लोग दूसरे को नीचा दिखाते हैं। हरियाणा में तो एक गाना भी तैयार हुआ है कि मेरे से व्याह कर ले कितने घने बिहारी मेरे अंदर काम करते हैं। आखिर आजादी से लेकर अब तक बिहार बाकी राज्यों से कहाँ पीछे रह गया कि अपने आप को विकसित कहने वाले राज्य के लोग बिहारी एक गाली के रूप में प्रयोग करने लगे। बिहार की अधिकतर जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी को यदि कोई बिहार का नागरिक किसी महानगर में बोलता है तो वहाॅं के लोग उसे हीन भावना से देखते हैं, लेकिन ऐसे तो अब वो भी दिन दूर नहीं जब अंग्रेजी बोलने वा...

15 करोड़ लोग है कोरोना से संक्रमित, सरकार छुपा रही आंकड़ा

अपने देश में बढ़ते कोरोना मरीजों की संख्या रुक नहीं रही हैं। जहाॅं पिछले 24 घंटे में 11,000 से अधिक रिकॉर्ड कोरोना मरीज मिले है तो वहीं सरकार पर अब कोरोना के आंकड़ों में घाल मेल करने के आरोप भी लगने शुरू हो गए है। लाख छुपाओ छुप न सकेगा, राज है इतना गहरा दैनिक भास्कर के अपने लिखे लेख में योगेन्द्र यादव ने ये दावा किया है कि सरकार कोरोना के आंकड़ों को बहुत बड़े पैमाने पर छुपाने कि कोशिश कर रही है। योगेन्द्र यादव ने पहले सरकारी आंकड़ों से बताया कि अभी 3 लाख से ज्यादा कोरोना केसेस भारत में है जो हर 16 दिन में दुगनी हो रही है। अगर ये रफ्तार जारी रहा तो 15 अगस्त तक  40 से 50 लाख तक कुल मामले बढ़कर हो जाएंगे और रफ्तार में थोड़ी कमी भी आई तो भी अक्टूबर में ये संख्या 2 करोड़ के ऊपर होगा। योगेन्द्र यादव ने बताया कि प्रमुख वैज्ञानिकों का एक समूह इंडियन साइंटिस्ट रेस्पॉन्स टू कोविड-19 (INDSCICOV) के मुताबिक ये आंकड़ा 20 से 30 गुना ज्यादा कम दिखाया जा रहा है। वास्तविक कोरोना संक्रमित मरीज 1 करोड़ से ऊपर हो सकते है। सिर्फ़ इतना ही नहीं योगेन्द्र यादव ने बताया कि ICMR के सर्वे...

अरे मोदी जी न बीमारी रुक रही है और न ही बेरोजगारी

कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारत उन देशों में से एक था जिसने सबसे कड़ा लॉकडाउन लगाया था । पूरे अप्रैल महीने में किसी भी प्रकार की कोई आर्थिक गतिविधि नहीं हुई । इस दौरान देश अनेक प्रकार की समस्या से गुजरा जिसमें प्रवासी मजदूरों संख्या काफी भयावह थी। एक तरफ जहाँ कोरोना वायरस जैसी भयानक बीमारी है वही दूसरी तरफ कई लोगो को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है। इसका कोई सरकारी आंकड़ा तो आपको कही देखने को नहीं मिलेगा लेकिन  एक स्वतन्त्र संगठन CIME (Centre for Monitoring Indian Economy) के द्वारा बेरोजगारी को लेके एक सर्वे कराया जाता है। जिसे पिरामिड हाउसहोल्ड कहा जाता है इसके अनुसार मार्च 2019 से मार्च 2020 तक कुल लगभग 40 करोड़ लोगों के पास रोजगार था लेकिन जब अप्रैल के महीने में सर्वे करया गया तो पता चला कि नौकरियों के आंकड़ा 40 करोड़ से गिरकर 28 करोड़ लोगों पर आ गयी मतलब इस लॉकडाउन के दौरान लगभग 22 करोड़ लोगों की नौकरी गयी है। इस सर्वे के अनुसार सबसे अधिक छोटे व्यापारी और श्रमिक वर्ग के लोगो को नुकसान हुआ उमीद है कि जल्दी ये इसका उपचार किया जाएगा। कोरोना के दौरान महिलाओं और दलित वर्ग की समस्य...

तो कल कर लिया ना पर्यावरण बचाने का ढोंग?

हमने पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा तो आज हमे उसकी सज़ा मिलनी ही थी। हो ना हो ये कोरोना महामारी जो फैली है , ये सृष्टि ने खुद को बचाने का उपाय किया है। हर साल 5 जून को पर्यावरण दिवस विश्व भर में मनाया जाता है। हालांकि, एक भी दिन बिना शुद्ध पर्यावरण के जीना असंभव हैं , हाँ वो तो हम इंसान हैं । जो असंभव को संभव कर लेते हैं , वो भी अपनी सुविधा के अनुसार... जब हमे अपने समाज मे विकास को बढ़ाना होता है तो हम बड़ी ही आसानी से पेड़ों को काट कर शहर बसाते हैं, नई इमारतें, नये हर, नये मॉल और ना जाने किन- किन आधुनिक चीजों का अविष्कार करते हैं।  एक आधुनिक शहर की तो हम कामना करते हैं जहाँ सभी तरह की सुविधाएं हमे मिले.... फिर फिज़ा के गर्म होने पर शिकायतें क्यों? जब आधुनकिता वाला शहर बनाने को हमने इतने पेड़ काट दिये तो आज इस जेठ माह की दोपहर में मन घने पेड़ की छाँव तलाशता है क्यों? बहुत सवाल हैं, जवाब दे पाना मुश्किल है। पर कोई बात नही हमे तो स्मार्ट सिटी चाहिए फिर पेड़ के पेड़ ही क्यों ना काटने पड़े। वैसे सृष्टि ने अपना इंतजाम कर लिया है, परिणाम कुल मिला कर सामने महामारी के रूप में है। चलो इस महामार...

अभिभावक दिवस क्यों है खास?

दुनिया मे माता - पिता को सबसे ऊँचा भगवान का दर्जा दिया गया है। मनुष्य के जीवन के साथ होने वाला ये रिश्ता उम्र भर रहता है, ऐसे मे इस आधुनिक युग की भागदौड़ में रिश्तों को सहेजने और उसके महत्व को समझाने के लिए हर साल 1 जून विश्व अभिवावक दिवस मनाया जाता है। इस खास दिन का आरंभ साल 2012 मे संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा की गई थी। हालांकि अभिवावक दिवस मनाने की शुरुआत 1994 मे अमेरिका में हुई थी। इसके बाद विश्व भर मे इस दिन को मनाया जाने लगा। भारत और अमेरिका में यह दिन जुलाई के आखिरी रविवार को मनाया जाता है।माँ- बाप मनुष्य के जीवन की वो अटूट डोर है , जिसके बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल है, बच्चे के पैदा होने से लेकर उसकी सभी जरूरतों का ख्याल माँ- बाप को होता है। दुनिया में हर माता- पिता के लिए उनका बच्चा अहम होता है, फिर उसमे चाहे लाख बुराइयाँ हों। बच्चों को हर वो खुशी देना जिसकी वो इच्छा करते है हर माँ- बाप की पहली प्राथमिकता होती है, उनके लालन - पालन से लेकर उनके जीवन को सुरक्षित करना, उनको सही गलत की पहचान सिखाना उनको हर रिश्ते का सम्मान और अहमियत बताने काम करना, हर माता- पिता का अधिकार...