दुनिया मे माता - पिता को सबसे ऊँचा भगवान का दर्जा दिया गया है। मनुष्य के जीवन के साथ होने वाला ये रिश्ता उम्र भर रहता है, ऐसे मे इस आधुनिक युग की भागदौड़ में रिश्तों को सहेजने और उसके महत्व को समझाने के लिए हर साल 1 जून विश्व अभिवावक दिवस मनाया जाता है। इस खास दिन का आरंभ साल 2012 मे संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा की गई थी। हालांकि अभिवावक दिवस मनाने की शुरुआत 1994 मे अमेरिका में हुई थी। इसके बाद विश्व भर मे इस दिन को मनाया जाने लगा। भारत और अमेरिका में यह दिन जुलाई के आखिरी रविवार को मनाया जाता है।माँ- बाप मनुष्य के जीवन की वो अटूट डोर है , जिसके बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल है, बच्चे के पैदा होने से लेकर उसकी सभी जरूरतों का ख्याल माँ- बाप को होता है। दुनिया में हर माता- पिता के लिए उनका बच्चा अहम होता है, फिर उसमे चाहे लाख बुराइयाँ हों। बच्चों को हर वो खुशी देना जिसकी वो इच्छा करते है हर माँ- बाप की पहली प्राथमिकता होती है, उनके लालन - पालन से लेकर उनके जीवन को सुरक्षित करना, उनको सही गलत की पहचान सिखाना उनको हर रिश्ते का सम्मान और अहमियत बताने काम करना, हर माता- पिता का अधिकार और फर्ज़ दोनो हैं।
जीवन में माता पिता की भूमिका
ज़रूरत हमे है की हम उनके इस तप को समझे कि हमारे माता -पिता ने कितने जतन से हहमारा पालन- पोषण किया है। और उनके इस तप , त्याग का आदर भाव से धन्यवाद करना चाहिए और धन्य मानना चाहिए की उन्होंने ने हमारे जन्म से लेकर हमारे लिए वो सब कुछ किया जिसकी हमे ज़रूरत थी। ना की आज की भागदौड़ भरी इस दुनिया मेंअपने माता- पिता को अकेला छोड़ देना चाहिए।
लॉकडाउन ने फिर किया एक
कोरोना महामारी के इस कठिन समय के दौरान लोगों को फिर से रिश्तों को सहेजने का समय मिला है, जिसमे माँ- बाप को और उनके बच्चों को अधिक से अधिक समय एक दूसरे के साथ बिताना चाहिए, यादें बाँटनी चाहिये । समय के साथ सब कुछ ठीक होने के बाद सब फिर अपने काम पर लौट जाएँगे। इसीलिए इस संकट मे माँ- बाप और बच्चों को एक दूसरे का सहारा बनना चाहिए चाहें वो कामकाज़ी माँ- बाप हो या बुजुर्ग हर स्तिथि में अपने माँ- बाप का सहारा बने।
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