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अटल बिहारी बाजपेई:- झुक नहीं सकते

जून महीने की 25 तारीख सन् 1975 भारतीय लोकतंत्र इतिहास का सबसे काला दिवस। इस दिन लोकतंत्र की हत्या कर विपक्ष की आवाज को दबाया गया, उन्हें जेलों में ठूस दिया गया और यहा तक की मीडिया पर भी प्रतबंध लगा दिया गया।


पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को बचाने के लिए देश में आज ही के दिन आपातकाल की घोषणा कर दी। जो भी उनके विपक्ष में खड़ा हुआ उसे जेल में डाल दिया गया। जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, मोरारजी देसाई, लाल कृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी बाजपेई और ना जाने कितने नेताओं को जो भी इंदिरा गांधी के खिलाफ हुआ उसे जेल में डाल दिया गया।

आज हम साझा कर रहे है आपके साथ एक कविता जो आपातकाल के समय अटल जी ने जेल में रहते हुए लिखा था।

झुक नहीं सकते है

टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता है निरंकुशता से,
अंधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अंतिम अस्त होती है।

दीप निष्ठा का लिए निष्कम्प,
वज्र टूटे या उठे भूकंप,
यह बराबर का नहीं है युद्ध,
हम निहत्थे शत्रु है सन्नध्द,
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज।

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण,
पुनः अंगद ने बढ़ाए चरण,
प्राण - प्रण से करेंगे प्रतिकार,
समर्पण की मांग अस्वीकार।

दांव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
टूट सकते है मगर रुक नहीं सकते।

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