आज कल भारत में #boycottchina खूब चल रहा है मतलब चीन से माल खरीदना कम करो पर क्या वास्तव में ये मुमकिन हैं? क्योंकि एक तरफ हम देख रहे कि ट्विटर और फेसबुक पर #boycottchina ट्रेंड कर रहा है वही दूसरी तरफ हमारी ई-कॉमर्स वेबसाइट और इलेक्ट्रॉनिक दुकानों पर चीनी फोन आते ही मिनटो में बिक जा रहे हैं। कही न कही ये बात हमारी जनता को खलती भी है कि हम स्मार्टफोन के मामले में चीन पर इतना क्यो निर्भर है।
आज के समय मे चीनी स्मार्टफोन जैसे शिओमी, वीवो, ओप्पो ये भारतीय स्मार्टफोन बाजार के 72% मार्केट पर कब्जा की है बाकी के फोन के पास केवल 28% शेयर बचा है। कही न कही इसकी वजह यह की एक बजट फोन में किसी आम आदमी को जो चाहिए होता है वो सारी खूबिया इसमे मिल जाती है तो आप कैसे उस छोटे कामगार को कह सकते है जो कई महीनों तक काम करके 10 से 12 हजार बचा के यह फोन खरीदता है की तुम देशभक्ति दिखाओ और 6 हजार मिला कर कोई और कंपनी का फोन खरीदो चीनी फोन मत खरीदो क्योंकि ये लोग बॉर्डर पर तनाव उत्पन्न करते है। यह एक बहुत ही कड़ाव सच है की चीनी फोन का हमारी समार्टफोन उद्योग में जो वर्चस्व है वो इतनी जल्दी नहीं खत्म होने वाला।
IDC (International Data Corporation) के अनुसार चीन ने 2019 में भारत से स्मार्टफोन उद्योग में 16 बिलियन डॉलर कमाया है और आगे आने वाले समय में ये आंकड़ा लगभग 20 से 25 बिलियन डॉलर तक पहुॅंच सकता है। वास्तव में हम कहना चाहते है कि एक आम आदमी से हम उम्मीद नहीं कर सकते है कि वो #boycottchina को इतना सफल बना पायेगा, क्योंकि पहली बात तो ये है कि 90% लोगो को पता ही नहीं है की चीनी उत्पाद है क्या-क्या और दूसरी बात हमारे देश मे इतना राष्ट्रवाद है नहीं जैसा कि साउथ कोरिया , जापान में है। हमारे यहा तो लोग नारे लगाते है और फेसबुक ट्वीटर पर काफी कुछ लिख देते है लेकिन जब बात टैक्स देने की आती है तो सबसे कम टैक्स भारतीय ही देते है और जब बात भारतीय समान खरीदने की आती है तब वही लोग जो उन्हें सस्ता या बेहतर लगता है उसे खरीदते है। तो जहाँ तक #boycottchina का सवाल आता है ऐसे तो यह कैसे सफल हो पायेगा।
घूम फिर कर बात आती है भारत सरकार पर क्योंकि सरकार को ही कुछ ऐसा करना पड़ेगा जिससे लोग चीनी समान खरीदना बन्द कर दे वो भारतीय या उसके जगह पर कोई दूसरे विकल्प चुने। उसकी शुरूआत भी लगभग हो चुकी है क्योंकि सरकार चीन के 300 उत्पाद पर आयात शुल्क बढ़ाने वाला है इससे लगभग 8 से 10 बिलियन डॉलर आयात पर प्रभाव पड़ेगा।
मार्च 2019 के आकड़ों के अनुसार भारत और चीन के बीच व्यापार लगभग 88 बिलियन डॉलर का हुआ है। भारत के लोग ये मानते है चीन के लिए भारतीय बाजार ही सबसे बड़ा है जबकि ऐसा है नहीं हमसे ज्यादा चीन रूस को निर्यात करता है। हमारे यहाॅं जो गाड़िया बनती है उनके समान भी चीन से आते है। हाल ही में जब #boycottchina ज्यादा मजबूत हुआ तो मारुति और बजाज ने कहाँ की चीनी समान के आयात पर बैन या आयात शुल्क बढ़ाने से हमें ही नुकसान होगा क्योंकि इससे जो गाड़िया अभी तक 6 से 7 लाख में मिल रही है उसके बाद वो 8 से 9 लाख में मिलेगी।
भारत दवाईयों का एक बहुत ही बड़ा निर्यातक है ये हमारे लिए बहुत ही गर्व की बात है लेकिन इस पर कोई बात नहीं करता है। भारत 2018-2019 में लगभग 13.69 बिलियन डॉलर का बाजार किया था लेकिन यहाँ पर भी हम चीन पर ही निर्भर है क्योंकि दवा बनाने के लिए हमे API (Active Pharmaceutical Ingredients) की जरूरत पड़ती है और वह हम चीन से लेते है वैसे अब इसके लिए सरकार ने कुछ कोशिश की है। सरकार ने API के लिए 10,000 करोड़ रुपये दिए है लेकिन ये पूरी तरह से लागू होते-होते भी लगभग 5 से 6 साल लग जाएंगे तब तक इसके लिए हम चीन पर ही निर्भर रहेंगे।
अगर आप विस्तृत रूप से देखते है तो पता चलता है की #boycottchina बहुत ज्यादा सफल नहीं होने वाला है। टेलिकॉम सेक्टर में उनका प्रभाव आप देख ही रहे है और ऑटो कंपनी ने पहले ही हाथ खड़े कर दिए है।
आखिर में जो हम बात कर रहे है #boycottchina मुहीम की, क्या इसका कोई फर्क चीनी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा भी? भारत चीन से उसकी GDP का 3% आयात करता है। अगर कल भारत चीन को बैन भी कर देता है तो उसके पास और भी बाजार है । भारत उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण नहीं है इसलिए वो बहुत ही घमंड से अपने सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स में कहता है कि " चीन की GDP भारत की GDP से 5 गुना ज्यादा बड़ा है यह बहुत बड़ा अंतर है, तो किस तरह एक छोटी अर्थव्यवस्था हमारे ऊपर प्रतिबंध लगा पाएगी। अगर भारत चीन के साथ व्यापर युद्ध छेड़ता है तो नुकसान उसे ही उठाना पड़ेगा"।
लेकिन इसका यह मतलब नहीं की हम #boycottchina को छोड़ दे। चीन का बहिष्कार करने का मतलब ये भी है की हम आत्मनिर्भर बने और ये राष्ट्रवाद सिर्फ चीन के लिए नहीं या सिर्फ़ युद्ध के समय ही नहीं अपितु हमे ये अपनी आत्मा में शामिल करें। चीन के अंदर आज फेसबुक, यूट्यूब जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म नहीं है। उसने खुद के अपने सॉफ्टवेयर बनाए है और चीनी लोग उसी का ही प्रयोग करती हैं। अब चीन को फर्क पड़े या ना पड़े हमें अब आत्मनिर्भर की दिशा में बढ़ना होगा। जिसपर भारत सरकार ने अब कुछ पहल की है।
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