हमने पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा तो आज हमे उसकी सज़ा मिलनी ही थी। हो ना हो ये कोरोना महामारी जो फैली है , ये सृष्टि ने खुद को बचाने का उपाय किया है। हर साल 5 जून को पर्यावरण दिवस विश्व भर में मनाया जाता है। हालांकि, एक भी दिन बिना शुद्ध पर्यावरण के जीना असंभव हैं , हाँ वो तो हम इंसान हैं । जो असंभव को संभव कर लेते हैं , वो भी अपनी सुविधा के अनुसार... जब हमे अपने समाज मे विकास को बढ़ाना होता है तो हम बड़ी ही आसानी से पेड़ों को काट कर शहर बसाते हैं, नई इमारतें, नये हर, नये मॉल और ना जाने किन- किन आधुनिक चीजों का अविष्कार करते हैं।
एक आधुनिक शहर की तो हम कामना करते हैं जहाँ सभी तरह की सुविधाएं हमे मिले.... फिर फिज़ा के गर्म होने पर शिकायतें क्यों? जब आधुनकिता वाला शहर बनाने को हमने इतने पेड़ काट दिये तो आज इस जेठ माह की दोपहर में मन घने पेड़ की छाँव तलाशता है क्यों? बहुत सवाल हैं, जवाब दे पाना मुश्किल है। पर कोई बात नही हमे तो स्मार्ट सिटी चाहिए फिर पेड़ के पेड़ ही क्यों ना काटने पड़े।
वैसे सृष्टि ने अपना इंतजाम कर लिया है, परिणाम कुल मिला कर सामने महामारी के रूप में है। चलो इस महामारी मे ये तो अच्छा हुआ कि आसमाँ में हवा एक बार फिरसे शुद्ध हो गयी एक बार फिर पक्षियों की आवाजें सुनाई देने लगी हैं, नदियों का पानी एक बार फिर पवित्र ,साफ और गंध मुक्त हो गया है, साथ ही वो गंगा किनारे कल- कल करता पानी इस बात की गवाही दे रहा है, कि हम इंसानो ने सृष्टि का क्या अंजाम किया?
जबकि भगवान की ओर से सबसे खूबसूरत चीज हमे उपहार स्वरूप मिली है। लेकिन लॉकडाउन के बाद क्या? फिरसे लोग व्यस्त हो जाएंगे शहर के नवीनीकरण में... फिर पेड़ कटेंगे फिर नदियाँ गंदी होंगी, फिर हवा प्रदूषित होगी, और एक बार फिर 5 जून को पर्यावरण को बचाने का ढोंग बड़े बड़े नेता अभिनेता कर के चले जाएंगे। खैर हमे उससे क्या हमारे पास वक्त ही कहाँ है?
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शांभवी मिश्रा इलाहाबाद विशवविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक |
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